गुरु पूर्णिमा


गुरु पूर्णिमा








आज पावन पुनीत गुरु पूर्णिमा है। आज का दिन शिष्यों के लिए सबसे अहम और महत्वपूर्ण होता है। शिष्य के जीवन में गुरु का क्या महत्व होता है यह एक शिष्य हीं समझ सकता है। जब मां के गर्भ से बच्चा जन्म लेता है तो वह शिशु कहलाता है और जब उसे गुरु वरण करते हैं अर्थात गुरु स्वीकार करते हैं तो वह शिष्य  कहलाने लग जाता है। दोनों संज्ञाओं(शिशु और शिष्य)में ध्वनि की बहुत अधिक समानता है। ये समानता इसलिए भी है कि दोनों घटनाओं में उसका जन्म हीं होता है।एक बार वह मां के गर्भ से जनमता है और पुनः दूसरी बार वह जन्म लेता है, जब वह गुरु के शरण में जाता है। शिशु एक अनगढ़ मिट्टी के समान होता है और शिष्य एक सुंदर सी गढ़ी  हुई मुर्ती के समान होता है। जिस प्रकार अनपढ़ मिट्टी उपादेय नहीं होती, उसी प्रकार अनगढ़ शिशु भी समाज, देश और राष्ट्र के लिए उपादेय नहीं होता। गुरु प्राप्ति के बाद ही वह घर, समाज, राष्ट्र तथा स्वयं के लिए भी उपयोगी बन पाता है। हम सभी सुनते आए हैं कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं, यह ठीक भी है कि आज के बच्चे हीं कल देश को गढ़ेंगे, पर गढ़ने की योग्यता को पाने के लिए हमें गुरु की शरण में जाना ही होगा। पहले हम स्वयं सुगढ़ बने, तभी तो देश के सुंदर भविष्य को गढ़ पाएंगे। भारत में गुरु शिष्य की परंपरा सदियों पुरानी है। इसीलिए तो हमारा देश विश्व गुरु के पद पर पदस्थापित रहा है।

गुरु पूर्णिमा का यह दिन समर्पण का दिन है, अहंकार को तिलांजलि देने का दिन है, कृतज्ञता जताने का दिन है, यह दिन है गुरु चरणों में सर्वस्व समर्पण करने का।आप सभी भारत की महान संतति को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक- हार्दिक बधाई। और साथ ही ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि हम सभी के हृदय में गुरु के प्रति अथोर  प्रेम हो, इतना प्रेम, इतना प्रेम की गुरु और शिष्य  के बीच की भिन्नता समाप्त हो जाए। शिष्य इस प्रकार गुरुमय हो जाए कि उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाए। जब सिर्फ गुरु तत्व ही शेष रह जाएगा तब बनेगा देश का भविष्य तब होगा मानव जीवन सफल। धन्यवाद 

                   सभी सुधि जनों को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक हार्दिक बधाई।

Reactions

Post a Comment

0 Comments