लड़कों को भावना व्यक्त करनी चाहिए।


लड़कों को भावना व्यक्त करनी चाहिए।

हमारे लेख का विषय है कि लड़कों को भी भावनाएं व्यक्त करनी चाहिए। तो सर्वप्रथम मैं यहां भावनाओं की परिभाषा की चर्चा कर लेना आवश्यक समझता हूं। कोई भी मनुष्य भावना के बगैर वैसे ही है जैसे पत्थर से बनी मूर्ति जैसे मिट्टी से बना बूत।हमलोग हर्ष में, शोक में, जन्म में, मृत्यु में, सफलता में, असफलता में, क्रोध में, शांति में, जीवन में चाहे कैसी भी परिस्थिति हो उसको व्यक्त करने लिए हमें भावनाओं का सहारा लेना पड़ता है। जरा सोचिए जीवन की इतनी कीमती वस्तु को यदि हम लड़कों से छीन लिया जाए तो कैसा होगा हमारा जीवन? क्या हमारे जीवन में रस नाम की कोई वस्तु रह जाएगी? उत्तर बिल्कुल साफ है नहीं।

हमारे समाज में अक्सर लड़के को सिखाया जाता है कि तुम लड़के हो तुम्हें रोना नहीं चाहिए। तुम ऐसे रोओगे तो लोग क्या कहेंगे, कभी-कभी हमें यह भी सुनने को मिलता है कि मर्द को दर्द नहीं होता। इन सब बातों से पता चलता है कि हमारे समाज का ढर्रा ऐसा है जहां लड़कों को भावनाएं व्यक्त करने की इजाजत, कभी प्रत्यक्ष रूप से और कभी अप्रत्यक्ष रूप से नहीं दी जाती। किसी भी संस्कार का बीजारोपण बाल्यकाल से होना शुरू हो जाता है। और हम लोगों को बचपन से ही यह सिखाया जाने लगता है कि बेटे तुम लड़के हो, तुम्हें रोना नहीं चाहिए,हिम्मत से काम लेना चाहिए तुम अपनी बहन, की अपनी पत्नी की, अपनी मां की रक्षक बनने के लिए आए हो, तो रक्षक भला कैसे रो सकता है लेकिन मैं पूछता हूं। अगर यह सही भी है कि हम लड़के रक्षक की भूमिका में समाज में प्रस्तुत होते हैं तो क्या रक्षक की भावनाएं नहीं होती?क्या वह कभी सुखी और दुखी नहीं हो सकता? क्या कभी उसे रोने के लिए किसी कंधे की आवश्यकता नहीं होती? क्या कभी हमारे अंदर भावनाओं का समंदर नहीं उमड़ता? क्या लड़कों को इस तरह की शिक्षा देकर उन्हें पत्थर बात नहीं बना दिया जाता? मेरा समाज,अभिभावक, और उन लोगों से जिन्होंने यह क्रूर धारणा बना ली है की भावना जैसी कीमती वस्तु लड़कों के लिए नहीं होती। उनसे मेरा नम्र निवेदन है कि कृपया हमारे साथ अन्याय ना करें हमें भी चेतन जीव की तरह जीने दें। भावनाओं के कोमल झूले में हमारे जीवन को भी झूलने का आनंद लेने दें जिसमें हमारा भी उतना ही हक है जितना हमारे समाज की लड़कियों  को है।

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