हिंदी के उद्गम।


हिंदी के उद्गम। 

हिंदी के उद्गम।






14 सितंबर का दिन हम भारतीयों के लिए अस्मिता का दिन है क्योंकि आज ही के दिन सन 1949 ईस्वी को, संवैधानिक रूप से देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ था। और पूर्णतः 26 जनवरी 1950 ईस्वी को लागू हुआ।तब से लेकर आज तक हम हर वर्ष14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाते आ रहे हैं।
14 सितंबर का यह दिन सिर्फ हिंदी भाषा को लेकर ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इस माध्यम से हमारी संस्कृति,
 हमारे रीति- रिवाज, हमारी सांस्कृतिक धरोहर आदि सभी की हम सुरक्षा भी करते हैं और आने वाले  संततियो को अपनी भाषा, संस्कृति, रीति- रिवाज, से अवगत कराने के साथ-साथ इसे सुरक्षित रखने के उद्देश्य से भी हम इस पर्व को मनाते आ रहे हैं क्योंकि आज की नई पीढ़ी पश्चिमी सभ्यता के हिसाब से रहना चाहती है। वैसे ही खान- पान रहन-सहन, उनकी भाषा का अनुकरण करना चाहती है। वह नहीं जानती कि पश्चिमी सभ्यता से कहीं अधिक समृद्ध और व्यापक हमारी भारतीय सभ्यता है।
हिंदी की सुरक्षा और विस्तार के उद्देश्य से 14 सितंबर को हिंदी की समृद्धि में, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी के योगदान को याद करते हुए हिंदी की सुरक्षा और प्रसार के लिए कटिबद्ध पूर्वक हिंदी दिवस को मनाना लाजमी है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म उस समय हुआ जब हिंदी सिर्फ पद्य की भाषा हुआ करती थी। भारतेंदु ने पहली बार हिंदी को गद्य की भाषा बनाने का महत्वपूर्ण प्रयास किया। उन्होंने हिंदी में मौलिक नाटकों और रंगमंच पर काम किया ‌। उन्होंने हिंदी में बुद्धिवाद, मानवतावाद,व्यक्तिवाद, सहिष्णुता, न्याय आदि विषयों पर भी अपनी लेखनी चलाई जिससे हुआ यह कि हिंदी पढ़ने वाले की संख्या बढ़ने लगी। हिंदी नाटकों को लोग रुचि पूर्वक देखने भी लगे और पढ़ने भी लगे। इस प्रकार हिंदी के प्रचार- प्रसार की गति तेज होने लगी। भारतेंदु से प्रभावित होकर तत्कालीन अन्य कवियों ने भी हिंदी में कहानियां, नाटक आदि लिखना प्रारंभ किया। हिंदी रीतिकालीन पद्य की परिधि से बाहर निकलकर गद्य की परिधि में विस्तार पाने लगी। इस प्रकार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अनायास हीं हिंदी के विस्तार में अपना वैसा योगदान दिया जैसा कि कोई प्रयास पूर्वक भी दे पाने में सक्षम नहीं हो पाता है। इसलिए आज हिंदी दिवस के दिन उनका स्मरण लाजमी ही नहीं आवश्यक भी है। हिंदी को भारतेंदु हरिश्चंद्र ने उस समय परवान चढ़ाया जब हिंदी अपने पैरों पर लड़खड़ा रही थी । आज हिंदी अपने पैरों पर खड़ी है और भारत हीं नहीं, पूरा विश्व, हिंदी के महत्व को स्वीकार कर रहा है। ऐसे समय में हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम हिंदी के महत्व को स्वयं भी समझे और पूरे विश्व में इसकी महत्ता का प्रचार- प्रसार करने में अपना योगदान दें। इसके लिए पहले हमें हिंदी पर स्वयं गर्व करना सीखना होगा, उसे अपने जीवन का अंग बनाना होगा। अंग्रेजी का पिछलग्गू होने के बजाय,अपने विचार हिंदी में अभिव्यक्त करने में हमें गर्व महसूस करना होगा, जो कि अब तक हम नहीं कर पा रहें हैं।
हिंदी हमारी पहचान है, हिंदी हमारी मां है । हम हिंदी से है हिन्दी हमसे है। हिंदी है तो हम हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारा प्राचीन गौरवशाली इतिहास जीवित रहे, उत्तरोत्तर समृद्ध से समृद्धतम होता रहे, तो हमें हिंदी की रक्षा करनी हीं होगी। जय हिंद जय भारत जय हिंदी दिवस।
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